गुब्बारा

गुब्बारे, वैसे तो गुब्बारे हम फुलाते ही फोडने के लिए है, ये हर छोटे, बड़े, घर के, बाहर के, सामाजिक, राजनैतिक सभी तरह के कार्यक्रमों का एक अभिन्न अंग होते है.

पर जरा इस परिभाषित व्याख्या से हट कर सोचते है, यूँ तो गुब्बारे पर कई कविताएं लिखी जा चूँकि है.

पर मसान फ़िल्म का वो दृश्य जिसमें हमारे दीपक जी, शालू जी के लिए गुब्बारा छोड़ते है प्यार के इजहार के लिए, और शालू जी भी बाद में गुब्बारा छोड़ती है. उस दृश्य का खुद का एक सेपरेट फैन बेस है.

कभी कभी जब मेले में किसी गुब्बारे वालों का देखता हुँ तो खरीद लेता हूँ एक गुब्बारा और छोड़ देता हूँ फिर, यही सोच कर की कोई शालू मेरे गुब्बारे को भी देखे और गुब्बारा छोड़े.

संसार में पानी के बाद एक प्रेम ही ऐसा है जो अपना रास्ता खुद ढूंढ लेता है, एक प्रेमी के मन की आवाज़ का कम्पन सारी रुकावटों का लाँघ कर पहुँच जाता है अपनी प्रेमिका के हृदय पटल पर और गूंजता है.

फिर होता है प्रेम, जो इजहार होने के लिए कभी चिट्ठी, झुकी आँखे, चॉकलेट, पेन, पेंसिल, गुलाब और अब तो गुब्बारे का भी सहारा लेता है.

प्रेम नित्य दिन नये रूप और कीर्तिमान गढ़ता है, वो सारी सीमाओं से परे है, इसे सिद्ध करने के लिए राजाओं ने ताजमहल बना दिया तो एक मजदूर ने पहाड़ी काट कर रास्ता बना दिया.

सबने अपने अपने हिसाब से प्रेम करा और बेपनाह बेहिसाब करा. और इसी प्रेम की ताकत ने ना जाने लोगों से क्या क्या करा दिया.

प्रेम की कोई निश्चित परिभाषा नहीं होती इसलिए ये सब के लिए जितना नया होता है उतना ही ख़ोज करने का एक नायब विषय भी |

खैर प्रेम की एक उम्र होती है, किसी किसी का प्रेम अमर हो जाता है, तो किसी का नहीं.

अगर प्रेम बीच में कही छूट गया हो तो मेरे साथ चलिएगा बनारस के अस्सी घाट पर, जीवन का उद्देश्य और प्रेम दोनों वहाँ मिल जायेंगे, क्युँकि हम सब में एक बनारस बसता है..

Published by Indori_bol

कहानियाँ हम सब के पास होती है, कुछ खुद की कुछ दुसरो की, मेरे पास भी कुछ कहानियाँ है वही बताता हुँ बस..

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